दिल्ली के कारीगरों ने दिखाया बिहार-यूपी में हुनर

दिल्ली के कारीगरों ने दिखाया बिहार-यूपी में हुनर
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इन दिनों यूपी-बिहार में दिल्ली की कारीगरी का हुनर जलवा दिखा रहा है। लॉकडाउन के दौरान दिल्ली छोड़कर जाने वाले कारीगरों की वापसी नहीं हो सकी है। तीसरी लहर की आशंका के बीच दिल्ली लौटने की जगह उन्होंने अपने इलाके में ही कारीगरी शुरू कर दी है। वहां बने उत्पाद दिल्ली के साथ ही विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं। दिलचस्प यह कि सामान स्थानीय स्तर पर बनने से इनकी कीमतें 10-15 फीसदी कम हो गई हैं।

कोरोना जनित लॉकडाउन से बड़े पैमाने पर हुए पलायन का सीधा असर अब दिल्ली में दिखने लगा है। तीसरी लहर की आशंका के बीच कारीगर लौटने को तैयार नहीं हैं। कारोबारियों के लुभावने ऑफर भी उनकी वापसी सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह कोरोना काल के पलायन की पीड़ा है। कारीगरों ने अपने-अपने इलाके में ही काम शुरू कर दिया है। आपदा में अवसर ढूंढते हुए उन्होंने दिल्ली की तुलना में सस्ती दर पर माल तैयार किया। इसके बाद वे एशिया की सबसे बड़ी मंडी में सप्लाई भी कर रहे हैं।

एशिया की सबसे बड़ी रेडीमेट गारमेंट मार्केट गांधी नगर के कारोबारी देसराज मल्होत्रा बताते हैं कि इस वक्त धारा उल्टी बहने लगी है। पहले उत्तर प्रदेश और बिहार के व्यापारी दिल्ली माल खरीदने पहुंचते थे, लेकिन अब वहां बना माल दिल्ली पहुंच रहा है। मजेदार बात यह कि दिल्ली में बैठकर कारीगर जो माल 100 रुपये मेें बनाता था, वही अपने घर से 85-90 रुपये में दे रहा है। उधर, पश्चिमी चंपारण बेतिया के जिलाधिकारी कुुंदन कुुमार का कहना है कि दिल्ली समेत दूसरे शहरों से लौटने वाले कारीगरों का माल विदेश भी भेजा जा रहा है। अभी स्पेन को पांच हजार जैकेट भेजे गए हैं। अपने देश में ही 45 हजार जैकेट लद्दाख भेजे गए हैं।

पूरे परिवार को कम पर लगाने का लाभ
पूर्वांचल में मजदूरी सस्ती है। फिर दिल्ली से लौटे कारीगरों ने अपने पूरे परिवार को काम में लगा दिया है। बेटा बटन लगाने का काम कर रहा है तो पत्नी कपड़े की सफाई में लगकर धागे आदि काट रही है। कटिंग मास्टर कपड़े को शेप देता है तो औरतें सिलाई करके तैयार कर देती हैं। साथ ही, वहां कपड़ा भी सस्ता मिल जाता है। लोकल मार्केट में बिक्री करने पर उन्हें 5 प्रतिशत जीएसटी भी नहीं देना पड़ता। इससे कीमत नीचे आ गई है।

दिल्ली में यहां से आ रहा रेडीमेड गारमेंट
चांदपुर, काठ, मुजफ्फरनगर, चांदपुर, मेरठ, कानपुर व लखनऊ के आसपास के क्षेत्र, लोनी, ट्रॉनिका सिटी, बुलंदशहर, बिहार, पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया, चनपटिया आदि।

इन सामान की हो रही है सप्लाई
जैकेट, ट्रैक सूट, महिलाओं के लिए सूट, टी-शर्ट, कैप्री, बच्चों के सूट समेत कई रेडीमेड गारर्मेट।

दिल्ली के इन इलाकों से हुआ पलायन
पुराना सीलमपुर, गांधीनगर, कृष्णानगर, जाफराबाद, सुभाष नगर, लोनी, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, कैलाश नगर, गांधी नगर के आसपास बसी पूर्वी दिल्ली की कई कॉलोनियां।

उत्तर प्रदेश का संबलपुर बना बड़ा हब
गांधीनगर के व्यापारी कंवल कुमार बल्ली का कहना है कि उत्तर प्रदेश के संबलपुर से सबसे अधिक माल दिल्ली आ रहा है। कच्चा माल वहां जाता है और वहां से बना माल दिल्ली आ जाता है। उद्योग वहां पहले से लगे थे। पलायन करके गए मजदूरों को वहां रोजगार मिल गया तो उनकी कारीगरी का लाभ लेकर दिल्ली के मार्केट के ट्रेंड के अनुसार रेडीमेड माल भी मिलने लगा। इसी तरह कानपुर, बुलंदशहर गए कारीगर भी बेहतर कारीगरी का प्रदर्शन कर दिल्ली को माल भेज रहे हैं।

स्पेन में भी कारीगरी की धूम
दिल्ली, लुधियाना, सूरत ही नहीं, दिल्ली से लौटने वाले कारीगरों द्वारा तैयार माल स्पेन तक जा रहा है। स्पेन में पांच हजार जैकेट भेजे गए हैं। देश में 45 हजार जैकेट लद्दाख भेजे गए। पहले कपड़ा सूरत और लुधियाना से आता था। अब चनपटिया गांव में पावरलूम लगा दिया गया है। कपड़ा भी दिल्ली, लुधियाना, मुंबई से लौटे कारीगर ही तैयार कर रहे हैं। कारीगर मजदूर से मालिक बन गए हैं। शर्ट का कॉलर, बटन, प्लास्टिक प्रिंटिंग यहीं होने लगा है। जूते भी मैन्यूफैक्चरिंग कर रहे हैं। उन्हें स्किल प्रशिक्षण भी मिला है। छह महीने में कारीगरों ने 10 करोड़ से अधिक की मैन्यूफैक्चरिंग की है। जल्द ही तैयार माल दक्षिणी अफ्रीका भी भेजा जाएगा।
– कुंदन कुमार, जिलाधिकारी, पश्चिम चंपारण बेतिया बिहार

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