…साथ की घडी में अपनों का विरोध क्यों!

…साथ की घडी में अपनों का विरोध क्यों!
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कोरोना ने मानवता को एक मोड पर लाकर खडा कर दिया है। यानि हम यूं कहे कि कोरोना शायद हमारी मानवता की मिसाल की परीक्षा लेने आया हो या सब्र की। क्योंकि हाल की जो स्थिति पैदा हुई है उसमें हमें एक मानवता की जरूरत है ना कि रूपए-पैसे की। एक इंसानियत दिखाने की जरूरत है। परंतु ये क्या दादरा नगर हवेली जो एक मानवता की मिसाल को पेश करता था आज मानवता कहां चली गई। बल्कि यह घडी ऐसी है जब हमें एक साथ खडे होकर इस जंग को हारना है।
हमारे प्रदेश के नागरिक जो नेपाल में भगवान पशुपति के दर्शन करने गए थे और आज जब इन सभी लोगों को प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और प्रशासक की जद्दोजहत के बाद प्रदेश में सुरक्षित वापस लाया जा रहा है तो हम क्यों अपने ही लोगोंे के वापस आने पर बवाल कर रहे है।  आज हम नेपाल से वापस अपने ही लोगों का विरोध कर रहे है। यह हमारे अपने ही है और हम अपने ही लोगों की वापसी पर विरोध कर रहे है यह कैसी मानवता है। क्या यहीं अपनो के साथ किया जाता है कि उन्हें भूखा-प्यास बीच रास्ते में छोड देते।
अरे! अजान भी ऐसी विकट स्थिति में भूखों को भोजन और प्यासों को पानी पिला रहे है। फिर यह तो हमारे ही प्रदेश के लोग है। क्या वो दिन भूल गए जब हम एक साथ त्यौहार, पर्व सुख-दुख में साथ देते है।  वैसे भी जो लोग नेपाल से वापस आए है उनको किसी तरह का कोई संक्रमण नहीं है। रही बात आईसोलेशन में रखने की तो यह एक प्रशासनिक प्रक्रिया है जो पूरी की जा रही है। हम आज जिनका विरोध कर रहे है वह हमारे अपने ही है, अगर मान लो इन लोगों में से कोई हमारी माँ, भाई, बहन या संगा-संबंधी होता तो क्या हम उनके साथ ही यही बर्ताव करते जो व्यवहार कर रहे है।
उन्हें ऐसे ही भूखा-प्यास बीच रास्ते में छोड देते। यही इंसानियत और मानवता। अरे! केवल सेवाकीय कार्य या कुछ बांट देने से मानवता नहीं दिखायी जाती, अगर मानवता दिखाना है हम सभी को अपनों के साथ खडा होना चाहिए। बल्कि साथ और समर्थन का ढिढौरा नहीं पीटना चाहिए। बल्कि प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद मोहन डेलकर ने नेपाल में फंसे प्रदेश के लोगों की वतन वापसी के लिए प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और प्रशासक प्रफुल पटेल का आभार माना है। साथ की घडी में आखिर क्यों हम अपनों का विरोध कर रहे है।
हमारे प्रदेश के नागरिक सुरक्षित घर लौट आए है, तो हमें तो सभी आभार और लौटे लोगों का स्वागत करना चाहिए। पर स्वागत तो गया भाड में विरोध पर अडे है। संकट की घडी में हमारी संस्कृति और मानवता हमें एक साथ खडे होने की बात सिखाती है। तो फिर हम विरोध करके कौन-सी मानसिकता को दर्शा रहे है, किसी और का विरोध होता तो मान लिया जाता, पर अपनों का ही विरोध यह कहां की इंसानियत है। बल्कि हमें तो ईश्वर का धन्यवाद मानना चाहिए कि हमारे अपने बिना किसी संक्रमण के अपने घर सुरक्षित लौट आए है।

– रमेश तिवारी
Admin

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