तीन साल की बच्ची आठ महीने से कर रही है अपने पिता का इंतजार

जंतर-मंतर पर चल रही किसान संसद के मंच से करीब 10 मीटर की दूरी पर एक गाड़ी खड़ी है। इसमें जरूरी दवाएं, तापमान, ब्लड प्रेशर नापने की मशीनें, ग्लूकोज की बोतलें और बुखार आदि की दवा व मरहम-पट्टी रखे हैं। रोज कुछ किसान यहां से दवा लेते हैं और अपनी जांच भी कराते हैं। इस चलते-फिरते अस्पताल की कमान संभाल रहे हैं डॉ. स्वायमान। वे 8 महीने पहले अमेरिका के कैलिफोर्निया से एक मरीज के इलाज के लिए दिल्ली आए थे। किसानों की समस्या को देखकर वे यहीं रुक गए। उनकी पत्नी और तीन साल की बेटी कैलिफोर्निया में हैं। बेटी को 8 महीने से पिता के घर लौटने का इंतजार है।
डॉ. स्वायमान ने बताया कि वे मूल रूप से पंजाब के तरनतारन जिले के हैं। बचपन में ही कैलिफोर्निया चले गए थे। अब वहां के एक अस्पताल में डॉक्टर हैं। वे बताते हैं कि मैं पिछले साल नवंबर में एक मरीज के इलाज के लिए दिल्ली आया था। जानकारी मिली कि सिंघु बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन चल रहा है। वहां जाकर देखा कि आंदोलनकारियों के पास मेडिकल की पर्याप्त सुविधा नहीं है। सोचा कि चार-पांच दिन बॉर्डर पर रहूंगा और किसानों को कुछ जरूरी दवाएं देकर अमेरिका निकल जाऊंगा। किसानों से मिले प्यार और उनकी जरूरतों को देखते हुए अब बॉर्डर पर ही रुकने का फैसला किया है। देखते ही देखते 8 महीने बीत चुके हैं। तभी से वे किसानों की सेवा में लगे हैं। इस दौरान हजारों आंदोलनकारियों का इलाज कर चुके हैं। दवा से लेकर सभी जरूरी मेडिकल सहायता उपलब्ध करा रहे हैं।
कई हजार किसानों को लगाई कोरोनारोधी वैक्सीन
डॉ. स्वायमान ने बताया कि आंदोलनकारी किसानों की बड़ी तादाद को देखते हुए उन्होंने अपने साथ एक हजार डॉक्टरों की टीम बनाई। सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर मेडिकल कैंप स्थापित किए, जहां किसानों को 24 घंटे इलाज की सुविधा दी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में उन्होंने करीब पांच हजार किसानों का इलाज किया। उन्होंने एक हजार से ज्यादा किसानों को वैक्सीन लगवाई। वे दिन में आंदोलनकारियों की सेवा करते थे और रात में पंजाब व हरियाणा निकल जाते थे। वहां लोगों के घरों तक ऑक्सीजन सिलिंडर पहुंचाते थे और मरीजों का इलाज करते थे। उन्होंने कई हजार लोगों को मास्क वितरित किए।
जब तक आंदोलन चलेगा डटे रहेंगे
स्वायमान का कहना है कि उन्हें परिवार की याद आती है। अमेरिका में वे जिस अस्पताल में काम करते हैं, वहां का प्रशासन भी उन्हें बुला रहा है। उनका कहना है कि अब पहला कर्तव्य देश है, पैसा नहीं। जब तक आंदोलन चलेगा, वह यहीं डटे रहेंगे।