सोशल मीडिया के ट्रेफिक सिग्नल

व्यंग -अशोक व्यास
आपाधापी के इस दौर में दोड़ती भागती जिन्दगी के रास्तों में चैन की सांस लेने का मतलब है अपना मोबाइल निकालो और शुरू हो जाओ . बटन दबाओ या टच करो समय कैसे बीत जाता है पता ही नही चलता . स्मार्ट युग में स्मार्ट फोन धारी के स्मार्ट उपयोगकर्ता को देख कर लगता है कि इस देश के अति व्यस्त बच्चों , युवाओं , अधेडों और महिलाओं के पास समय का वास्तव में टोटा है . घंटो कान में मोबाइल चिपकाये और हर किसी को टाइम नही है का जुमला चिपका देना जुमलेबाजी के इस दौर की सार्थक देन है . रही – सही कसर अम्बानी के सोजन्य से डेटा का उपयोग प्रतिदिन करने के टास्क को पूरा करने ने कर दी है .
डेटा खर्च करने के चक्कर में हम सब सोशल मीडिया के ट्रेफिक सिग्नल बन कर रह गए हैं . व्यस्त चोराहे के ट्रेफिक सिग्नल कितने निरपेक्ष भाव से गाड़ियों को आने – जाने का संकेत देते हैं . इधर की गाड़ी उधर रोक दी , उधर की जाने दी , कभी यहाँ इशारा , कभी वहां इशारा करके ट्रेफिक को व्यवस्थित करता है . व्हाट्स एपियों , फेसबुकियों , ट्विटरियों , इनस्टग्रामियों की भीड़ में हम सब भी ट्रेफिक सिग्नल की तरह सुबह से चोराहे पर खड़े आते – जाते मेसेज को इधर से उधर रवाना कर रहे हैं .
हमारे मोबाइल में कोई भी वीडियो , आडियो , फोटो , मेसेज , फूल , पत्ती आया नही कि उसे दुसरे के मत्थे मड़ने में देर नही करते . गुड्मोर्निग , गुडनाईट , फादर्स डे , मदर्स डे , रोज डे , और न जाने कौन – से डे की जानकारी इसी की कृपा से मिल रही है और इन आधुनिक त्यौहारों को मनाये जा रहे हैं . देशी त्यौहार की जानकारी भी एक महीने पहले अग्रिम बधाई और शुभकामना सन्देशो को पड़कर मिल रही है . ज्ञान ध्यान के , पति – पत्नी के बारे में , बीमारी के बारे में इतनी गंभीर जानकारी आती है कि उन्हें सच मान लो तो इस देश के युगल या तो तलाक ले लेंगे या साधू – साध्वी बन जायेगे और बचे – खुचे हॉस्पिटल में भर्ती हो जायेंगे .
चिट्ठी – पत्री के ज़माने में जिसने कभी किसी को जन्म दिन की बधाई और मरने पर ॐ शांति शांति लिख कर नही भेजा होगा . आज वही सुबह से उठकर ट्रेफिक सिग्नल की तरह सोशल मीडिया के चोराहे पर लपक – झपक करने लग जाता है . पता नही कितने जाने अनजाने मित्रों के सन्देश प्राप्त करना , फार्वड करना , लाइक करना , फालो करना ,चेट करना कितना बड़ा सामाजिक कार्य है . ट्रेफिक सिग्नल के सामने मारुती 800 हो या बी. एम.डब्ल्यू , देसी बाइक हो या विदेशी डुकाटी सबको समान द्रष्टि से रुको , देखो और जाने दो की प्रक्रिया की तरह मेसेज के साथ हम भी ट्रेफिक सिग्नल की रंगीन रोशनियों से प्रेरित है .
कुछ मेसेज तो ऐसे होते हैं जो घूम फिरकर वापस आ जाते है जैसे कोई गाड़ी शहर का चक्कर लगा कर वापस आ गयी हो . जैसे ही चोराहे पर हरा सिग्नल दिखा तो हम इतनी तेजी से गाड़ी बढ़ाते है कि कोई हमसे आगे न निकल जाये . कुछ मेसेज के हाल भी एसे ही होते है जिसे बिना देखे , बिना पड़े इतनी तेजी से आगे बढ़ाते है कि कोई हमसे आगे न निकल जाये तब वो मेसेज वायरल हो जाता है और समाज में संक्रमण की तरह फेलने लगता है .
शहर में जितने व्यस्त चोराहे हैं उतने ही सोशल मीडिया में व्हाट्स एप , फेसबुक , ट्विटर , इन्स्टाग्राम नाम के चोराहे है जिनके सिग्नल कई लोग बन जाते है . व्यस्त चोराहों पर फेस टू फेस नही फेसबुक पर मिलते है , आप ऑन लाइन हो इसका मतलब ठीक हो अभी ऑफ़ लाइन नही हुए हो . ट्रेफिक सिग्नल पर रुकने पर चिडियों का कलरव नही ट्विटर की नीली चिड़िया का चहचहाना सुनते है . जिस तरह हम चलती कार की खिड़की से कचरा फेंक देते है उसी तरह सोशल मीडिया के सिग्नल बन कर हमारे सामने भी दिल –दिमाग में भरे कचरे लोग उड़ेल देते है . लेकिन इसकी भी एक लिमिट है वर्ना ट्रोलिंग शुरू हो जायेगी .
और गूगल बाबा के तो कहने ही क्या ! हातिम ताई के सात सवाल हो या महाभारत का यक्ष प्रश्न या वेताल द्वारा विक्रम से उत्तर न मिलने पर सर के टुकड़े करने की धमकी हो , हर सवाल का जवाब गूगल बाबा के पास मोजूद है . नई और पुरानी पीड़ी को यु – ट्यूब के ज्ञान के राजमार्ग को छोडकर पोर्न की पगडण्डीयों पर चलकर अंधी गालियों में भटकते सिग्नल बन कर भी हम कितने बेबस हो कर देख रहे है लेकिन कुछ रास्ता नजर नही आ रहा है .
भूल चूक से मोबाइल खो जाये या चोरी हो जाये या खराब हो जाये तो एसा सूना – सूना सा लगता है जैसे हम अपनों से बिछड़ कर किसी अंजान शहर के चोराहे पर ऐसे ट्रेफिक सिग्नल बन कर चुपचाप खड़े है जहाँ पर कभी कोई गाड़ी नही आएगी . कर लो दुनिया मुट्ठी में का जो एहसास पहली बार स्मार्ट फोन को हाथ में पकड़ने पर हुआ था उसका अंत सोशल मीडिया के ट्रेफिक सिग्नल बन कर हो गया .
अशोक व्यास
मो. 99267 69326 , 79876 83574