बदलता जा रहा है दीपों का पर्व दीपावली, चाइनीज लाइटों ने ली दीयों की जगह

देहरादून:
देश में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों का एक विशेष महत्व है। उसी में से हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है दीपावली। दीपावली का ये पर्व भारत के प्राचीन काल से जुड़ा है। यही कारण है कि इस पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में प्राचीन दीपावली मनाने की विधि लुप्त होती जा रही है। इसकी जगह चाइनीज लाइटों और बम-पटाखों ने ले ली है।
दीपावली यानी दीप + अवली, ‘दीप’ का अर्थ दीपक तथा ‘अवली’ का अर्थ पंक्ति से है। दीपावली जिसे दीपकों की एक पंक्ति कहते है। दीपावली दीपों का त्योहार है तो आखिर अब क्यों ये सिर्फ पटाखों और शोर सराबे का त्योहार बनता जा रहा है। यह एक सोचनीय विषय है कि आखिर कैसे दीपावली बदल गई है। शास्त्रों में वर्णन है कि जब भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटकर वापस लौटे थे तो उनके स्वागत में दीप जलाए गए थे और जमकर खुशियां मनाई गई थी। लेकिन मौजूदा परिपेक्ष में अब सबकुछ बदल चुका है।
आज दीपावली के जगमग दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है। जैसे-जैसे देश तरक्की कर रहा है और नई टेक्नोलाजी आ रही है, वैसे-वैसे दीपावली का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। हाई टेक्नोलॉजी के इस युग मे भले ही दीपावली का स्वरूप बदल रहा हो लेकिन इसके बावजूद पौराणिक परम्पराओ की दीपावली का वास्तविक स्वरूप आज के इस मॉडन युग मे महालक्ष्मी के पूजन के दौरान जगमग रोशनी करने वाले दीपो की लंबी-लंबी लाइन इसका सबसे बड़ा प्रतीक हैं।