कोरोना संक्रमण के 10 से 15 दिनों के बाद दिखा ब्लैक फंगस का असर

देश में कोरोना वायरस के साथ म्यूकॉरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) लोगों की जान का दुश्मन बना हुआ है। म्यूकॉर से सबसे ज्यादा नुकसान आंखों को हुआ है जिसे विज्ञान की भाषा में राइनो ऑर्बिटल सेरीब्रल म्यूकॉरमायकोसिस (आरओसीएम) कहते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, कोरोना संक्रमण के 10 से 15 दिन के बीच अधिकतर मरीजों में आरओसीएम के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे। एक जनवरी से 2020 से 26 मई 2021 के बीच कुल 2826 मरीजों पर देश के अलग-अलग हिस्से में आरओसीएम के इलाज में जुटे विशेषज्ञों ने इसके खतरों, कारण समेत इससे अन्य बिंदुओं के बारे में पता लगाने की कोशिश की है। शोध हाल ही इंडियन जर्नल ऑफ ऑपथैलमोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि ब्लैक फंगस से वे लोग भी संक्रमित हुए जिन्हें मधुमेह की शिकायत नहीं थी। संक्रमण होने के बाद 43 फीसदी मरीजों ने ऑक्सीजन थैरेपी नहीं ली। साथ ही इनमें से 22 फीसदी मरीजों में मधुमेह भी नहीं मिला।
25 राज्यों के नेत्र रोग विशेषज्ञों ने किया अध्ययन
25 राज्यों के 98 मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विशेषज्ञों ने मिलकर यह अध्ययन किया है। इस दौरान पता चला कि देश में ब्लैक फंगस के मामले सबसे ज्यादा 22 फीसदी गुजरात और 21 फीसदी महाराष्ट्र में हैं। आशंका व्यक्त की गई है कि इन राज्यों में स्टेरॉयड युक्त दवाओं का गलत तरीके से इस्तेमाल हुआ है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा था कि जिन लोगों में मधुमेह अनियंत्रित है, साथ ही जिन्होंने स्टेरॉयड युक्त दवाओं का बेहिसाब सेवन किया है उन मरीजों में फंगस काफी तेजी से देखने को मिल रहा है। इसी दौरान यह भी तथ्य सामने आए कि औद्योगिक ऑक्सीजन के इस्तेमाल से भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़े हैं लेकिन पहली बार चिकित्सीय अध्ययन के जरिये ब्लैक फंगस के कारणों का पता चल पाया है।
मस्तिष्क तक फंगस तो जान बचाना मुश्किल
म्यूकॉर अगर मस्तिष्क तक पहुंच गया तो मरीज की आंख तो दूर उसकी जान बचाना मुश्किल है। ऐसे मरीजों में मौत का खतरा 100 फीसदी है। मधुमेह से ग्रसित मरीजों के साथ जिन्हें स्टेरॉयड दी गई है उन्हें अधिक खतरा है। – प्रो. विजयनाथ मिश्रा, न्यूरोलॉजिस्ट, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
समय पर इलाज बहुत जरूरी तभी आंख सुरक्षित
म्यूकॉर अगर मस्तिष्क तक चला गया तो आंख को बचाना मुश्किल होता है। लक्षण दिखने के तुरंत बाद समय पर रोगी अस्पताल पहुंचे और समय पर उसे दवा मिल जाए तो उसकी आंखों की रोशनी बचाई जा सकती है।
-डॉ. किशोर कुमार, नेत्र रोग विशेषज्ञ, सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर
ओरओसीएम की चपेट में आने वाले
लिंग संख्या प्रतिशत
पुरुष 1993 71
महिला 833 29
आरओसीएम और मधुमेह
2194 (78) फीसदी को मधुमेह
631 (22) फीसदी को मधुमेह नहीं
गुजरात रहा सर्वाधिक प्रभावित
राज्य कुल रोगी भर्ती प्रतिशत
गुजरात 2859 609 22
महाराष्ट्र 2770 603 21
कर्नाटक 481 368 13
मध्य प्रदेश 752 278 9.8
हरियाणा 436 252 8.9
उत्तर प्रदेश 701 130 4.6
तेलंगाना 744 118 4.2
राजस्थान 492 69 2.5
आरओसीएम का कहर और उपचार…
73 फीसदी मरीजों को इलाज के लिए एम्फोटेरिसिन बी-इंजेक्शन
56 फीसदी मरीजों की इंडोस्कोपिक साइनस और पैरानेजल सर्जरी
15 फीसदी मरीजों के आंख का ऑर्बिट निकालना पड़ा
17 फीसदी मरीजों की संक्रमण दोनों ही आंख निकालनी पड़ी
22 फीसदी मरीजों के आंख की ऑर्बिट में इंजेक्शन दिया गया
14 फीसदी मरीजों की मौत
कोरोना और आरओसीएम…
51.9 वर्ष रही आरओसीएम की चपेट में आने वाले मरीजों की औसत उम्र
71 फीसदी पुरुषों को आरओसीएम, 57 फीसदी को ऑक्सीजन की जरूरत
87 फीसदी मरीजों के इलाज में कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स के इस्तेमाल की पुष्टि
21 फीसदी को दस दिन तक स्टेरॉयड, 78 फीसदी मधुमेह से ग्रसित
72 फीसदी की आंख के भीतरी हिस्से (ऑर्बिट) को स्टेज थ्री नुकसान