किसान आंदोलन ने बदल दिए सारे सियासी समीकरण

सबकी निगाहें करीब 32 फीसदी दलित वोटरों पर है। इसी वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने इस बिरादरी के चरणजीत सिंह चन्नी को अचानक मुख्यमंत्री बनाया। अकाली दल ने इसी वोट बैंक के लिए बसपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया है।
विधानसभा चुनाव से पहले किसान आंदोलन से पंजाब की सियासत में आए भूचाल ने सारे समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस नए चेहरे के साथ चुनाव मैदान में है तो बीते चुनाव में उसे चमत्कारिक जीत दिलाने वाले कैप्टन अमरिंदर ने भाजपा और सुखदेव सिंह ढींढसा के साथ तीसरा मोर्चा बना लिया है। राजग का साथ छोड़ने वाला अकाली दल इस बार बसपा के साथ चुनाव मैदान में है तो आम आदमी पार्टी भगवंत मान को सीएम पद का चेहरा बनाने पर विचार कर रही है।
सवाल है कि इस बार राज्य में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा? जाहिर तौर पर राज्य में जीत की चाबी किसानों और खासतौर पर सिख बिरादरी के पास है। इस बिरादरी को साधने के लिए सभी दलों ने अपने अपने हिसाब से रणनीति बनाई है। भाजपा को उम्मीद है कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद कैप्टन अमरिंदर और ढींढसा के साथ तैयार किया गया तीसरा मोर्चा किंग मेकर की भूमिका अदा सकता है।