पूर्व राष्ट्रपति की मीडिया को सलाह- सरकार का ‘मुखपत्र’ न बने

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि मीडिया के साथ सब ठीक नहीं है। योजना बनाकर पक्षपातपूर्ण एजेंडे के लिए संदर्भ और प्रेरित रिपोर्टिंग की ओर इशारा करते हुए उन्होंने इस तरह की अनियमितताओं की जांच करने के लिए आत्म-सुधार की आवश्यकता का आह्वान किया। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तरफ से आयोजित वार्षिक ‘राजेंद्र माथुर मेमोरियल लेक्चर’ में उन्होंने कहा कि जब विचारों और समाचारों, विचारों और निष्पक्षता के बीच अंतर तेजी से धुंधला हो रहा है, तो मीडिया संगठन समाज की प्रहरी के रूप में अपनी बुनियादी भूमिका से समझौता नहीं कर सकते। उन्हें सरकार का ‘मुखपत्र’ नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मीडिया की जिम्मेदारी है कि विचारों पर विवादास्पद रूप से बहस की जाए और विचारों को बिना किसी डर या पक्ष के स्पष्ट किया जाए, ताकि राय हमेशा अच्छी हो। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि ‘समाज हर मामले की सच्चाई जानने के लिए अखबारों, पत्रिकाओं और मीडिया संगठनों पर निर्भर है। इससे मीडिया के कामकाज में कमी आ सकती है। यह चिंताजनक है कि इन दिनों कुछ प्रकाशनों ने इस तरह के अन्य विपणन रणनीतियों और अपने राजस्व को चलाने के लिए ’पेड न्यूज’ का सहारा लिया है। इस तरह की अनियमितताओं की जांच करने के लिए आत्म-सुधार की आवश्यकता है। मुखर्जी ने सुझाव दिया कि मीडिया को देश की अंतरात्मा का रक्षक होना चाहिए, यह एक लोकतांत्रिक गणराज्य का पोषण करने के लिए निरंतर प्रयास में सक्रिय भागीदार होना चाहिए। मीडिया को सभी नागरिकों के लिए न्याय और मौलिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।