पंजाब के कांग्रेसी दिल्ली में रहे Zero

जालंधर
दिल्ली विधानसभा चुनावों में ‘आप’ ने जिस कदर बाजी मारी है, उससे कांग्रेस खास तौर पर पंजाब खेमे में घबराहट पैदा हो गई है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सहित उनके पदाधिकारियों के सभी जीत के दावों की पोल चुनाव परिणामों ने खोल कर रख दी है। दिल्ली में कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के दौरान वे बड़ी-बड़ी ढींगे हांक रहे थे कि दिल्ली में अगली सरकार कांग्रेस की बनेगी परंतु वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी पार्टी खाता नहीं खोल पाई।
हालांकि पंजाब के कांग्रेसी दिल्ली में पार्टी को कोई सीट नहीं जिता सकें हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि दिल्ली में जीरो पर रहने वाले अब आने वाले विधानसभा चुनाव में कैसे हीरो बनेंगे? दिल्ली वालों ने कैप्टन अमरेन्द्र और उनके सांसद, मंत्रियों, विधायकों व अन्य कांग्रेस पदाधिकारियों को पूरी तरह नाकार दिया है, जिन सीटों पर सिख समुदाय रहता था।
वहीं कांग्रेस आलाकमान को उम्मीद थी कि भाजपा व अकाली दल (बादल) में आई खटास के चलते पंजाब के कांग्रेसी दिल्ली में रहने वाले लाखों पंजाबियों को अपने पक्ष में कर लेंगे परंतु कैप्टन की टीम सकारात्मक माहौल नहीं बना सकी है, जिससे पंजाब कांग्रेसियों की विकास के दावों की पोल खुल गई है।
अब दिल्ली चुनाव नतीजों का सीधा प्रभाव पंजाब के अगले विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा? पार्टी को सबसे ज्यादा नुक्सान पंजाब के ज्यादातर कांग्रेस नेताओं के हवाहवाई प्रचार के कारण हुआ क्योंकि जिन नेताओं की वहां चुनाव ड्यूटियां लगाई गई थीं, उन्होंने इन चुनावों को संजीदगी से नहीं लिया और वे केवल खानापूर्ति करते रहे। एक वरिष्ठ मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पंजाब से प्रचार को गए अनेकों नेता वहां मौज-मस्ती करने में डूबे रहे।
प्रदेश कांग्रेस से संबंधित कई दबंग व धनाढ्य नेताओं के तो दिल्ली के फाइव स्टार होटलों में शराब व शबाब में लिप्त रहने की चर्चाएं रही हैं। उक्त मंत्री का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में दिल्ली के चुनाव नतीजों का बुरा असर पंजाब पर पड़ेगा। वहीं अब कांग्रेस के सभी 70 सीटों से औंधे मुंह गिरने का सीधा असर पंजाब में होने वाले 2022 के चुनाव में पड़ना तय है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र ने दिल्ली चुनावों में रैलियों के अलावा रोड शो भी किए परंतु इस दौरान उन्होंने मतदाताओं के सामने पंजाब में अपनी सरकार के 3 वर्षों की उपलब्धियों के ऐसे कसीदे पढ़े जिससे न केवल मतदाताओं व सोशल मीडिया में कैप्टन सरकार के दावों की पोल खुली, उलटा कांग्रेस की जगहंसाई अलग से हुई। मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि उन्होंनें पंजाब में 12 लाख नौजवानों को नौकरियां दीं परंतु जब इस बारे सवाल उठने लगे तो नौकरियां, रोजगार मेलों के जरिए प्राइवेट कम्पनियों में जॉब दिलाने के आंकड़े गिना दिए गए।
पंजाब में इंडस्ट्री व घरेलू उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मुहैया करवाने व प्रदेश के सर्वपक्षीय विकास करवाने को दावों के चलते भी कांग्रेस को दिल्ली में फायदा मिलने की बजाय उलटा नुक्सान हुआ क्योंकि जमीनी हकीकत में पंजाब में आज बिजली देश भर में सबसे महंगी मिल रही है । इंडस्ट्री आज भी 5 रुपए यूनिट बिजली पाने की राह देख रही है।
प्रदेश का खाली खजाना, ठप्प पड़ा विकास, खर्चों पर कटौती करना, सड़कों की दुर्दशा, शगुन स्कीम, पैंशन, घर-घर रोजगार देना, किसानों का पूरा कर्जा माफ करना, 2500 रुपए महीना बेरोजगारी भत्ता, स्मार्टफोन जैसे अनेकों वायदे हैं, जिन्हें कै. अमरेन्द्र की सरकार अमलीजामा नहीं पहना पाई है। ‘आप’ ने अपने प्रचार में इन सभी दावों को जनता की अदालत में रखा और दिल्ली में करवाए विकास की पंजाब से तुलना करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जिस कारण पंजाब कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाई।