सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका को सताने लगा पंजाब में केजरीवाल का डर

जालंधर
पंजाब कांग्रेस में मौजूदा समय में चल रही अंतर्कलह की रिपोर्ट लगातार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास पहुंच रही है। जिस तरह से दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है और पंजाब कांग्रेस के विधायकों की अपनी ही सरकार की नाकामियों को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है, उससे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी को यह चिंता सताने लगी है कि कहीं कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा पंजाब में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी न उठा ले।
2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने दो तिहाई बहुमत के साथ 80 सीटें जीती थीं। वहीं राज्य में सौ से ज्यादा सीटें जीतने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी इन चुनावों में 20 सीटें जीतते हुए सबसे बड़े विरोधी दल के रूप में उभरी थी और शिरोमणि अकाली दल इन चुनावों में तीसरे स्थान पर पहुंच गया था। दिल्ली की बड़ी जीत ने पंजाब में आम आदमी पार्टी को संजीवनी दे दी है। कार्यकर्ता में उत्साह बढ़ गया है, जबकि शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के माथे पर बल पड़ने लगे हैं।
नेता प्रतिपक्ष रहे एच.एस. फूलका ने ‘आप’ और विधायक पद से इस्तीफा दे दिया।
विधायक सुखपाल सिंह खैहरा ने भी पार्टी छोड़ दी। उसके बाद से अब तक नाजर सिंह मानशाहिया, अमरजीत सिंह संदोआ, मास्टर बलदेव सिंह जैसे विधायक भी ‘आप’ से निकल चुके हैं। पंजाब में तीन वर्षों से नेतृत्व का संकट झेल रही आम आदमी पार्टी को मजबूत करने के लिए पार्टी नेतृत्व ने इसकी कमान पंजाब मामलों के नवनियुक्त इंचार्ज और दिल्ली के विधायक जरनैल सिंह को सौंपी है। जरनैल सिंह ने पंजाब का प्रभारी बनते ही पार्टी से बाहर हो चुके नेताओं की घर वापसी के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं।
जरनैल सिंह 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में लंबी विधानसभा हलके से पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मुकाबले चुनाव लड़ चुके हैं। इन चुनावों में जरनैल सिंह को 21,254 वोट हासिल हुए थे, जबकि 66,375 वोट हासिल कर प्रकाश सिंह बादल ने जीत हासिल की थी। पंजाब में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बार फिर से मजबूत विकल्प के तौर पर उभर सकती है, लेकिन उसके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बीते 3 वर्षों में पार्टी का संगठन बहुत कमजोर हो चुका है। जहां कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, वहीं कार्यकर्ताओं का उत्साह ठंडा पड़ चुका है।
पार्टी के सामने सबसे बड़ा संकट नेतृत्व का है। सांसद भगवंत मान के पास इस समय प्रदेश में ‘आप’ की बागडोर है, लेकिन कई ज्वलंत मुद्दों पर भी पार्टी की वैसी सक्रियता नहीं दिखाई देती जैसी विपक्षी पार्टी के रूप में दिखनी चाहिए। अब पार्टी को अगले विधानसभा चुनाव तक नए सिरे से नेताओं व कार्यकत्र्ताओं में उत्साह का संचार करना होगा। यह उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी।