भारतीय लोकतंत्र की जड़ें दुनिया भर की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा गहरी -वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त

वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त श्री उमेश सिन्हा ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ें दुनिया भर की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा गहरी हैं। उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र हिमालय की तरह युवा है और अनेकों विविधताएं एवं विभिन्नताएं होने के बावजूद भी हमारा प्रजातंत्र सबसे अधिक गरिमामय है। वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त श्री सिन्हा ने गुरूवार को राज्य विधानसभा में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) एवं लोकनीति-सीएसडीएस के संयुक्त तत्वावधान में विधायकों के लिए आयोजित एक दिवसीय सेमिनार के प्रथम तकनीकी सत्र में ’’तुलनात्मक वैश्विक संदर्भ में संसदीय लोकतंत्र और इसमें भारत का योगदान’’ विषय पर अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए। श्री सिन्हा ने भारतीय चुनाव व्यवस्था में तीन खतरों के बारे में बताते हुए कहा कि पहला खतरा तो बाहुबल है, दूसरा खतरा धन बल है तथा आज के परिवेश में चुनौतिपूर्ण पेडन्यूज/सोशल मीडिया तीसरा खतरा है। उन्होंने इसके साथ स्वतंत्र एवं पारदर्शी चुनावों के लिए इलेक्टोरल रिफॉर्म लाने पर भी बल दिया। ब्राउन यूनिवर्सिटी, यू.एस.ए. के प्रो. आशुतोष वाष्र्णेय ने इस सत्र में वक्ता के रूप में कहा कि भारत में चुनावी लोकतंत्र तुलनात्मक दृष्टि से बहुत सफल लोकतंत्र साबित हुआ है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र ज्यादातर अमीर देशों में ही सफल रह पाता है, आकड़ों के आधार पर भारत के समान प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में चुनावी लोकतंत्र उतना सफल नहीं रहा है, किन्तु निम्न मध्यम आय वर्गीय भारत जैसे देश में लोकतंत्र सफल रहा है। जबकि उदारवादी लोकतंत्र में तुलनात्मक दृष्टि से भारत को उतना सफल नहीं बताया। उन्होंने कहा कि उदारवादी लोकतंत्र में तीन बिन्दु क्रमशः पहला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, दूसरा धार्मिक स्वतंत्रता तथा तीसरा संगठनात्मक स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के प्रो. आशुतोष कुमार ने क्षेत्रीय राजनैतिक नेतृत्व का विश्लेषण करते हुए कहा कि भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि उदाहणार्थ पश्चिम बंगाल, बिहार तथा दक्षिण भारत के राज्यों की क्षेत्रीय राजनीति ने राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि राजनीति में लीडरशिप का महत्वपूर्ण योगदान होता है, किन्तु हमारे यहां राजनीतिक विज्ञान में लीडरशिप के अध्ययन को उतना महत्व नहीं दिया जाता है, जबकि ऎसा किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि राजनीति में स्थानीय, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर दलों की अपनी-अपनी विचारधारा होती है तथा उसके अनुसार ही आचरण होता है। उन्होंने कहा कि नेतृत्व का अध्ययन करके हम विभिन्न आयामों को और बेहतर तरीके से समझ सकते है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में दो लीडर के उद्भव का भी तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति से बाहर रहकर भी राजनीति की जा सकती है। इसके लिए उन्होंने विनोबा भावे का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय राजनीतिक नेतृत्व में राष्ट्रीयता को महत्व दिया जाता है तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है। इस सत्र में केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के डॉ. के.के. कैलाश ने भारत में बहुदलीय व्यवस्था के बारे में बताते हुए कहा कि 1989 से पूर्व भारतीय राजनीति में एक ही राजनीतिक दल का प्रभुत्व था, इसके बाद भारतीय राजनीति में बहुदलीय व्यवस्था क्रियाशील हुई। उन्होंने बताया कि इस व्यवस्था के आने से संसदीय कार्यवाही में भी कई बदलाव सामने आये हैं। इस व्यवस्था ने दलों में प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ सामंजस्य भी स्थापित किया है। परन्तु इससे संसदीय कार्यवाही में कुछ मुश्किलें भी सामने आती रही जैसे किसी बिल को पारित करने में संसद में अब अपेक्षाकृत पहले से ज्यादा समय लगता है। उन्होंने कहा कि 1996 से 2019 तक भारत में बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था मजबूत हुई है जिससे गठबंधन सरकारों का आना महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। सत्र के समापन पर आभार व्यक्त करते हुए संसदीय कार्य मंत्री श्री शांति कुमार धारीवाल ने कहा कि भारत में लोकतंत्र की नींव अपने आप में बहुत मजबूत और सफल है। उन्होंने कहा कि जब बांग्लादेश को भारतीय सेना ने आजादी दिलाई तो फील्ड मार्शल मानेकशॉ को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूछा था कि सेना की इस जीत से भारत के प्रजातंत्र को तो कोई खतरा नहीं है। इस पर फील्ड मार्शल ने जवाब में कहा कि हमारी सेना क्या पूरी दुनिया की सेना भी भारतीय प्रजातंत्र पर कब्जा नहीं कर सकती। इस अवसर पर श्री धारीवाल ने कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सिन्हा एवं सत्र के वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंट किये।