बिहार की राजनीति में कैसे उभरे नीतीश

बिहार की राजनीति में कैसे उभरे नीतीश
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पटना

बिहार में 2005 के विधानसभा चुनाव में राज्य की बड़ी पार्टी मानी जाने वाली राजद को करारी हार मिली थी। वहीं इसके बाद 2010 में भी एनडीए को बंपर बहुमत मिला था। आखिर कैसे नीतीश कुमार ने लालू यादव को दी मात?एक वक्त था जब बिहार की राजनीति का सबसे पावरफूल शख्स केवल लालू प्रसाद यादव को माना जाता था, लेकिन एक पुरानी कहावत है कि सत्ता और सफलता हमेशा अपने घर बदल लिया करती है। ये कहावत लालू प्रसाद पर बिल्कुल सही बैठती है, क्योंकि लालू प्रसाद यादव की सियासत के मजबूत महल के दरकते ही नीतीश कुमार ने अपना ऐसा सियासी किला खड़ा कर लिया, जिसे अभी तक कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल पाई है।

आइए नजर डालते हैं एक बार बिहार के उन चुनावी आंकड़ों पर जिन्हें अपने पक्ष में कर नीतीश कुमार, सुशासन बाबू बन गए।
2005 के विधानसभा चुनाव में अगर राजद के प्रदर्शन पर नजर डालें तो लालू प्रसाद के नेतृत्व में राजद 175 सीट पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन राजद को 54 सीट पर ही जीत मिली। वहीं टोटल वोट शेयर में से राजद ने 23.45 फीसदी वोट हासिल किया था। सिंगल पार्टी के तौर पर 2005 में सबसे ज्यादा वोट शेयर राजद को मिला। हालांकि सीटों की टैली में राजद तीसरे नंबर पर रही। यहीं से बिहार की सत्ता की सियासत में लालू प्रसाद जैसे मजबूत प्लेयर की पकड़ कमजोर होती चली गई।

चुनाव दर चुनाव राजद की सीटों की संख्या और वोट शेयर में कमी आई। अगर बीच में 2015 के चुनाव में राजद ने ज्यादा सीटें जीती तो ये उपलब्धि भी चिर प्रतिद्वंदी नीतीश कुमार के साथ गठजोड़ बनाकर ही हासिल की। 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने गठबंधन कर चुनावी मैदान में राजद को टक्कर दी थी। जदयू को इस चुनाव में 20.46 फीसदी वोट मिला तो भाजपा ने 15.65 फीसदी वोट हासिल किया। यानी एनडीए को कुल मिलाकर 36.11 फीसदी वोट मिला था।

2005 विधानसभा चुनाव में जदयू ने 88 सीटें हासिल की तो भाजपा को 55 सीटें मिली। भाजपा और जदयू को मिलाकर 143 सीट मिली। देखा जाए तो ये राजद की बड़ी करारी हार थी। वहीं भाजपा-जदयू ने 143 सीट जीतकर विधानसभा में अपने दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब रही थी। वहीं कांग्रेस और लोजपा ने भी 2005 के विधानसभा चुनाव में पूरा दम खम लगाया था। कांग्रेस ने कुल 51 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इस चुनाव में कांग्रेस ने 6.09 फीसदी वोट हासिल कर महज 9 सीट ही हासिल कर पाई थी।

अगर बात करें लोजपा के परफारमेंस की तो रामविलास पासवान की पार्टी को 2005 के चुनाव में नुकसान झेलना पड़ा था 203 सीट पर चुनाव लड़ कर लोजपा ने केवल 10 सीट पर जीत हासिल की थी। देखा जाए तो पिछले चुनाव की तुलना में 2005 के चुनाव में लोजपा को 19 सीटों का घाटा हुआ। 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने जो बिहार की राजनीति पर मजबूत पकड़ बनाई। वो आज तक बेरोकटोक जारी है। हां, बीच में नीतीश कुमार ने साझीदार भले ही बदला हो, लेकिन सत्ता की सियासत की धुरी सुशासन बाबू ही बने रहे हैं।

वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच निर्णायक टक्कर हुई। 2010 के विधानसभा चुनाव में 168 सीटों पर राजद चुनावी मैदान में उतरी, लेकिन लालू प्रसाद की राजद महज 22 सीट पर जीत हासिल कर पाई। राजद के वोट शेयर में भी काफी गिरावट आई। राजद को 18.84 फीसदी वोट ही मिल पाया। वोट शेयर गिरते ही 2005 के विधानसभा चुनाव की तुलना में राजद को 32 सीटों का नुकसान हुआ। देखा जाए तो राजद के लिए 2010 का विधानसभा चुनाव एक बुरे ख्वाब की तरह था।

वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा आम जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल करने में कामयाब रही। एक तरफ जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़कर 115 सीटों पर जीत दर्ज की तो दूसरी तरफ भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 सीटें जीतने में कामयाब रही। जदयू ने जहां 22.61 फीसदी वोट हासिल किया वहीं भाजपा को कुल 16.46 फीसदी वोट मिला। दोनों आंकड़ों को मिला दिया जाए तो एनडीए को कुल 39.07 फीसदी वोट हासिल किया। जबकि रामविलास पासवान की लोजपा महज तीन सीट तो कांग्रेस महज चार सीटों पर सिमट गई।

2010 का विधानसभा चुनाव के नतीजे से ये साफ हो गया कि नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी ने राजद के मजबूत किले को तोड़ दिया। लालू प्रसाद यादव के लिए ये चुनाव किसी बुरे सपने की तरह था क्योंकि सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के बावजूद 243 सीट में से महज 22 सीट उनके पास बची रह गई थी।

एनडीए ने विधानसभा की 243 में से 206 सीट जीतकर बिहार की राजनीति पर मजबूत पकड़ बना ली थी। यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब भी राजद पर हमला बोलते हैं तो वे ये कहना नहीं भूलते कि राजद 2010 के चुनावी नतीजों को याद कर ले। खैर इतिहास तो इतिहास ही होता है। वर्तमान में बिहार के सिंहासन पर नीतीश कुमार विराजमान हैं। वहीं भविष्य में क्या वे अपनी मजबूत पकड़ को बरकरार रख पाएंगे या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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